March 22, 2015

शून्य

शून्यता घेरे है
हर ओर छाए अँधियारे हैं
मन में घहराते काले साए हैं
ना कोइ रोशनी, ना कोई चिराग
निसभ्द, निश्बद
हर दिशा से आहत
मन को तड़पाते मेरे ये विचार हैं
नीरस निर्जीव से मेरे भाव हैं
कुछ उधार की मुस्कान
कुछ उधार के सपने
कब तक मुझे उभार सकेंगें
अब बस
बस अब और नही
ना अब और छटपटाना 
ना अब और दिशाहीन भहाव
बस और बस सम्पर्ण
समर्पण इस संघर्ष से

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